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प्रा॒तर॒ग्निं प्रा॒तरिन्द्रं॑ हवामहे प्रा॒तर्मि॒त्रावरु॑णा प्रा॒तर॒श्विना॑। प्रा॒तर्भगं॑ पू॒षणं॒ ब्रह्म॑ण॒स्पतिं॑ प्रा॒तः सोम॑मु॒त रु॒द्रं हु॑वेम ॥१॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

prātar agnim prātar indraṁ havāmahe prātar mitrāvaruṇā prātar aśvinā | prātar bhagam pūṣaṇam brahmaṇas patim prātaḥ somam uta rudraṁ huvema ||

पद पाठ

प्रा॒तः। अ॒ग्निम्। प्रा॒तः। इन्द्र॑म्। ह॒वा॒म॒हे॒। प्रा॒तः। मि॒त्रावरु॑णा। प्रा॒तः। अ॒श्विना॑। प्रा॒तः। भग॑म्। पू॒षण॑म्। ब्रह्म॑णः। पति॑म्। प्रा॒तः। सोम॑म्। उ॒त। रु॒द्रम्। हु॒वे॒म॒ ॥१॥

ऋग्वेद » मण्डल:7» सूक्त:41» मन्त्र:1 | अष्टक:5» अध्याय:4» वर्ग:8» मन्त्र:1 | मण्डल:7» अनुवाक:3» मन्त्र:1


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब सात ऋचावाले इक्तालीसवें सूक्त का आरम्भ है, उसके प्रथम मन्त्र में प्रातःकाल उठ के जब तक सोवें तब तक मनुष्यों को क्या-क्या करना चाहिये, इस विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! जैसे हम लोग (प्रातः) प्रभात काल में (अग्निम्) अग्नि को (प्रातः) प्रभात समय में (इन्द्रम्) बिजुली वा सूर्य को (प्रातः) प्रातः समय (मित्रावरुणाः) प्राण और उदान के समान मित्र और राजा को तथा (प्रातः) प्रभात काल (अश्विना) सूर्य चन्द्रमा वैश्व वा पढ़ानेवालों की (हवामहे) विचार से प्रशंसा करें (प्रातः) प्रभात समय (भगम्) ऐश्वर्य्य को (पूषणम्) पुष्टि करनेवाले वायु को (ब्रह्मणस्पतिम्) वेद ब्रह्माण्ड वा सकलैश्वर्य के स्वामी जगदीश्वर को (सोमम्) समस्त ओषधियों को (उत) और (प्रातः) प्रभात समय (रुद्रम्) फल देने से पापियों को रुलानेवाले ईश्वर वा पाप फल भोगने से रोनेवाले जीव की (हुवेम) प्रशंसा करें, वैसे तुम भी प्रशंसा करो ॥१॥
भावार्थभाषाः - मनुष्यों को रात्रि के पिछले पहर में उठ कर आवश्यक कार्य्य कर ध्यान से शरीरस्थ वा ब्रह्माण्डस्थ वा बिजुली, प्राण, उदान, मित्र, सूर्य, चन्द्रमा, ऐश्वर्य, पुष्टि, परमेश्वर, ओषधिगण और जीव विचार से जानने योग्य हैं, फिर अग्निहोत्रादि कामों से सब जगत् का उपकार कर कृतकृत्य होना चाहिये ॥१॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथ प्रातरुत्थाय यावच्छयनं तावन्मनुष्यैः किं किं कर्तव्यमित्याह ॥

अन्वय:

हे मनुष्या! यथा वयं प्रातरग्निं प्रातरिन्द्रं प्रातर्मित्रावरुणा प्रातरश्विना हवामहे प्रातर्भगं पूषणं ब्रह्मणस्पतिं सोममुत प्राता रुद्रं हुवेम तथा यूयमप्याह्वयत ॥१॥

पदार्थान्वयभाषाः - (प्रातः) प्रभाते (अग्निम्) पावकम् (प्रातः) (इन्द्रम्) विद्युतं सूर्यं वा (हवामहे) होमेन विचारेण प्रशंसेम (प्रातः) (मित्रावरुणा) प्राणोदानाविव सखिराजानौ (प्रातः) (अश्विना) सूर्याचन्द्रमसौ वैद्यावध्यापकौ वा (प्रातः) (भगम्) ऐश्वर्यम् (पूषणम्) पुष्टिकरं वायुम् (ब्रह्मणस्पतिम्) ब्रह्मणो वेदस्य ब्रह्माण्डस्य सकलैश्वर्यस्य वा स्वामिनं जगदीश्वरम् (प्रातः) (सोमम्) सर्वौषधिगणम् (उत) (रुद्रम्) पापफलदानेन पापिनां रोदयितारं पापफलभोगेन रोदकं जीवं वा (हुवेम) प्रशंसेम ॥१॥
भावार्थभाषाः - मनुष्यैः रात्रेः पश्चिमे याम उत्थायावश्यकं कृत्वा ध्यानेन शरीरस्थं ब्रह्माण्डस्य वाऽग्निं विद्युतं प्राणोदानौ मित्राणि सूर्याचन्द्रमसावैश्वर्यं पुष्टिः परमेश्वर ओषधिगणः जीवश्च विचारेण वेदितव्यः पुनरग्निहोत्रादिभिः कर्मभिः सर्वं जगदुपकृत्य कृतकृत्यैर्भवितव्यम् ॥१॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)

या सूक्तात माणसांच्या दिनचर्येचे वर्णन केलेले असून या सूक्ताच्या अर्थाची पूर्व सूक्तार्थाबरोबर संगती जाणावी.

भावार्थभाषाः - माणसांनी रात्रीच्या प्रहरी उठून आवश्यक कार्य करून ध्यानपूर्वक शरीरातील किंवा ब्रह्मांडातील विद्युत, प्राण, उदान, मित्र, सूर्य, चंद्र, ऐश्वर्याची पुष्टी, परमेश्वर, औषधी व जीव हे विचारपूर्वक जाणावेत. नंतर अग्निहोत्र इत्यादी कार्य करून सर्व जगावर उपकार करून कृतकृत्य व्हावे. ॥ १ ॥